100 बार का जोरदार भूकंप झेल गई 10 मंजिला इमारत, लकड़ी के मॉडल पर हुआ प्रयोग
कैलिफोर्निया । उत्तरपूर्वी सैन डिएगो में कुछ दिनों पहले एक भूकंप का झटका आया जिसने सब कुछ हिलाकर रख दिया। इसके ठीक चालीस मिनट बाद फिर से आए भूकंप ने यहां मौजूद 10 मंजिला इमारत को बुरी तरह से झकझोर दिया। लेकिन यह भूकंप थोड़ा अलग था, यह प्राकृतिक नहीं बल्कि कंप्यूटर के जरिए पैदा किया गया था। जिसे 1000 वर्गफुट के क्षेत्र में जहां पर 10 मंजिला इमारत मौजूद थी वहां तक ही सीमित रखा गया था। वह इमारत पूरी तरह से लकड़ी का बना हुआ एक मॉडल है। यह अब तक की सबसे ऊंची इमारत है जिस पर यह प्रयोग किया गया और क्षेत्र में भूकंपीय बल को दोहराने का प्रयास किया गया। दरअसल यह सैन डिएगो में कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी की टॉलवुड परियोजना का एक हिस्सा है, जो बड़े पैमाने पर लकड़ी से बनी ऊंची इमारत की भूकंप को सहने की क्षमता को जांचने की एक पहल है।
लकड़ी से बनी इमारत सामग्री, जो इन दिनों कार्बन युक्त कंक्रीट और स्टील के विकल्प के रूप में चर्चित हो रही है। 3.7 मिलियन डॉलर लागत के इस प्रयोग के लिए तैयार किया गया यह मॉडल पहले ही 100 से अधिक झटके झेल चुका है और अगस्त में परीक्षण के अंत से पहले तक यह और परीक्षण का सामना करेगा। ब्लूमबर्ग के अनुसार 112 फुट ऊंची इस इमारत की पहली 3 मंजिलें सिल्वर और नारंगी रंग के पैनलों से ढंकी हुई हैं जिसकी खिड़कियों कांच की बनी हुई हैं। बाकी सारी इमारत खुली हुई है, और प्रत्येक मंजिल पर 4 रॉकिंग दीवार (हिलने डुलने वाली दीवार) हैं। इसको इस तरह से बनाया गया है कि भूकंप में कम से कम नुकसान हो। यही नहीं इंजीनियर ने अंदर की जो दीवार और सीढ़ियां बनाई हैं वो गंभीर झटकों से बचाती है। इसके अलावा पूरी इमारत में सेंसर लगाए गए हैं।
जानकार बताते हैं कि टालवुड इमारत में एक के बाद एक सिम्युलेटेड भूकंपों को सहन करने की क्षमता लकड़ी के निर्माण की वजह से हैं। जो प्राकृतिक लचीलेपन के साथ संरचना को मजबूत करने के लिए डिजाइन की गई है। इसके अलावा इमारत में लगाई गई रॉकिंग दीवारों (हिलने डुलने वाली दीवार) का निर्माण स्प्रूस, पाइन और देवदार से बने प्लाईवुड पैनलों से किया गया है, जबकि पूर्व-पश्चिम की दीवारें डगलस फ़िर क्रॉस-लेमिनेटेड लकड़ी से तैयार की गई हैं। इमारत में स्टील की छड़ें हैं जो दीवारों को नींव से जोड़ती हैं। जब भूकंप आता है, तो भूकंपीय ऊर्जा को झेलने के लिए दीवारें आगे-पीछे हिलने लगती हैं। और जब कंपन बंद हो जाता है, तो स्टील की छड़ें इमारत को वापस सीधा कर देती हैं।