चुनाव बाद 6 कलेक्टरों पर गिर सकती है गाज
भोपाल । मप्र के निकाय चुनाव के पहले चरण में कम मतदान पर भाजपा के केंद्रीय कार्यालय ने रिपोर्ट मांगी है। उसके बाद पार्टी के अंदर इसके जवाब तलाशे जा रहे हैं, क्योंकि आलाकमान ने मप्र को दस फीसदी वोट शेयर बढ़ाने का टारगेट दिया था। उलटा मतदान घट गया। वहीं मप्र के निकाय चुनाव में भाजपा कम वोटिंग की बड़ी वजह प्रशासनिक स्तर पर जबलपुर, भोपाल, ग्वालियर, छिंदवाड़ा, सागर और सिंगरौली की प्रशासनिक मशीनरी की विफलता को मान रही है। इन जगहों पर मतदाता पर्चियों का नहीं बांटा जाना कम मतदान की प्रमुख वजह के रूप में सामने आया है। इन जगहों पर कालोनियों से मतदान केंद्र को दूर स्थानों पर बनाना और वोटर लिस्ट में एक ही कालोनी के वोटर्स के नाम अलग-अलग मतदान केंद्रों पर रहे। इस झमेले के बाद अब इन 6 जिलों के कलेक्टरों और उनके उपनिर्वाचन अधिकारियों को सरकार चुनाव बाद बदलने जा रही है। सूत्रों ने कहा कि सरकार की ओर से उन्हें इस गड़बड़ी का अंजाम भुगतने को तैयार रहने को कहा गया है।
अब तक की पड़ताल में इस नाकामी के जो प्रमुख कारण सामने आ रहे हैं, उनमें बूथ विस्तारक योजना पर पैनी नजर का अभाव, विधायक और उनके परिचितों तथा परिजनों का पंचायत-निकाय चुनाव में व्यस्त होना और अन्य सबसे महत्वपूर्ण कारण निचले स्तर तक हर काम में युवा हिस्सेदारी 80 से 90 फीसदी तक बढ़ाना रहा है। पार्टी का आकलन है कि भले ही वह अधिक से अधिक सीटें जीतती है, लेकिन कम मतदान के बाद उसके वोट शेयर में कमी आएगी। ऐसे में वह कैसे आलाकमान को संतुष्ट करेंगे। वह भी तब, जबकि राज्य में पार्टी इस वर्ष को संगठन पर्व के रूप में मना रही है। उसने बूथ से जुड़ा कार्यक्रम चलाया और तीन लोगों की त्रिदेव नाम से टीम बनाई।
भाजपा का प्रदेश में बूथ विस्तारक और त्रिदेव के नाम से शुरू किया गया प्रयोग पहले ही चुनाव में फेल नजर आया। इस प्रयोग का बड़े स्तर पर प्रचार-प्रसार किया गया था और बूथ लेवल तक ट्रेनिंग प्रोग्राम रखे गए थे, लेकिन जिस तरह से मतदाता सूची में गड़बडिय़ां सामने आईं, उसने इस अभियान की पोल खोलकर रख दी। भाजपा ने इस साल की शुरुआत में समर्पण निधि अभियान के साथ-साथ बूथ विस्तारक अभियान चलाया था। इस अभियान के तहत एक-एक वरिष्ठ नेता को बूथ विस्तारक बनाकर बूथ पर भेजा गया था, जहां उसे बूथ की समितियां बनाना थीं और उसे ऑनलाइन पोर्टल पर लोड करना था। बूथ समिति का उद्देश्य उस बूथ के अंतर्गत रहने वाले मतदाताओं की जानकारी रखना था और उनसे लगातार संपर्क में रहना था। उस समय दावे तो खूब किए गए कि अभियान सफल हो गया है। इसके लिए नेताओं ने अपनी पीठ भी थपथपाई। इसके बाद हर बूथ पर त्रिदेव के रूप में अध्यक्ष, महामंत्री और भाजपा की ओर से बीएलए बनाया गया। बूथ पर 20 लोगों की समिति भी तैयार हो गई, जिनका काम ही मतदाता सूची की जांच करना था और मतदाताओं को भाजपा से जोडऩा था, लेकिन इसका परिणाम उलटा हुआ और कई लोगों के नाम सूची से कट गए, जिसकी भनक भाजपा तक को लग नहीं पाई। अब भाजपा इसकी समीक्षा करने की बात कह रही है। समीक्षा के दौरान पदाधिकारियों से सवाल भी किए जाएंगे कि गड़बड़ी आखिर कहां हुई?
भाजपा नगर निगम चुनाव की मतगणना के दौरान किसी प्रकार की रिस्क नहीं लेना चाहती। इसको लेकर उसने मतगणना में बैठने वाले अपने एजेंट और पार्षद पद के प्रत्याशियों को ट्रेनिंग देने का कार्यक्रम तैयार किया है। हालांकि अभी इसकी तारीख तय नहीं हुई है। अगले सप्ताह किसी भी तारीख को यह प्रशिक्षण कार्यक्रम रखा जा सकता है। महापौर और पार्षद प्रत्याशियों के मतगणना एजेंट अलग-अलग रहेंगे और इन्हें अलग-अलग ही ट्रेनिंग दी जाएगी। मतगणना के दौरान उन्हें किस प्रकार से मशीनों पर निगाह रखना है और किस तरह से अपना काम करना है, इसको लेकर टिप्स दिए जाएंगे। वहीं जब तक संबंधित क्षेत्र की मतगणना समाप्त न हो जाए और उस राउंड का सर्टिफिकेट नहीं मिल जाए, तब तक बाहर भी नहीं निकलना है। प्रशिक्षण को लेकर नगर संगठन और निर्वाचन के अनुभवी नेताओं की मदद भी ली जाएगी, ताकि वे पूरे नियमों की जानकारी अपने एजेंट को दे सकें।