यूक्रेनी कमांडो को खास ट्रेनिंग दे रही ब्रिटिश सेना
कीव/लंदन । रूस-यूक्रेन जंग के बीच ब्रिटेन की सेना यूक्रेन के एक खास कमांडो ब्रिगेड को ट्रेनिंग दे रही है। इस ट्रेनिंग का मकसद रूसी सेना को अक्षम करना और दिसंबर में क्रिसमस से पहले रूस के कब्जे से क्रीमिया को वापस लेना है। इंग्लैंड के डार्टमूर में करीब 2 हजार यूक्रेनी सैनिक ट्रेनिंग ले रहे हैं।
इस ऑपरेशन में समुद्र, हवा और जमीन से हमले की ट्रेनिंग दी जाएगी। यूक्रेनी सैनिक रूसी सेना को रोकने के लिए एडवांस्ड तकनीक का इस्तेमाल करेंगे। इसके अलावा अमेरिका, ब्रिटेन और जर्मनी जैसे देश यूक्रेन को लंबी दूरी वाली नई मिसाइल भी देंगे, जिसका इस्तेमाल रूस के डिफेंस को तोडऩे के लिए किया जाएगा।
इससे पहले यूक्रेन के इंटेलिजेंस एजेंसी के चीफ किरिलो बुडानोव ने कहा था कि जल्द ही उनकी सेना क्रीमिया में दाखिल होगी। ये ट्रेनिंग डेवॉन के ओकेहैप्टन में मौजूद बैटल कैंप में हो रही है। यहां दूसरी किसी भी मिलिट्री यूनिट या आम जनता को जाने की इजाजत नहीं है। 42 कमांडो के रॉयल मरीन्स ट्रेनिंग देख रहे हैं। इसमें लंबी दूरी तक मार्च और रात में असली गोला-बारूद के साथ हमले की प्रैक्टिस हो रही है।
एक्सपट्र्स के मुताबिक, यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की देश से रूसी सेना को बाहर करना चाहते हैं। उनके इसी लक्ष्य के तहत क्रीमिया को रूस से वापस लेने का टारगेट तय किया गया है। जेलेंस्की का मानना है कि उन्हें रूसी सेना पर लगातार हमले के साथ ही उसे कमजोर करने पर काम करना है। कर्च ब्रिज और क्रीमिया में लगातार ड्रोन हमले से रूसी की वहां पर पकड़ कमजोर पड़ सकती है। ब्रिटेन के एक सीनियर मिलिट्री ऑफिसर के मुताबिक, यूक्रेन की सेना जंग को अपने हिसाब से मोड़ पाए, इसके लिए उसे नाटो की रणनीति सिखानी होगी। इसके बाद ही दुश्मनों पर हमले तेज किए जा सकते हैं। हालांकि, ये ट्रेनिंग कितनी सफल होगी ये इस बात पर निर्भर करता है कि यूक्रेनी सेना आने वाले चैलेंज का सामना कैसे करती है।
1954 में सोवियत संघ के नेता निकिता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को क्रीमिया तोहफे में दिया था। 1991 में जब सोवियत संघ टूटा और यूक्रेन और रूस अलग-अलग हुए तो दोनों देशों के बीच क्रीमिया को लेकर झगड़ा शुरू हो गया। मार्च 2014 में क्रीमिया में रूसी शासन के पक्ष में 96 प्रतिशत मतदान हुआ था। यूक्रेन छोडक़र रूस का हिस्सा बनने के लिए क्रीमिया में जनमत संग्रह की तैयारी के साथ यूक्रेन में शीतयुद्ध जैसा सुरक्षा संकट बढ़ गया था। इसके तुरंत बाद रूसी सेना और रूस समर्थक हथियारबंद फौज ने क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने क्रीमिया में हुए जनमत संग्रह को अमान्य घोषित कर दिया था। हृ में इसे लेकर हुए मतदान में 193 में से 100 देशों ने जनमत संग्रह को अमान्य घोषित करने के पक्ष में और 11 ने इसके खिलाफ वोट दिया था, जबकि 58 देशों ने वोटिंग नहीं की थी।