संविधान का अस्तित्व देश की जनसांख्यिकीय रूपरेखा पर निर्भर करता है: न्यायाधीश
चेन्नई । मद्रास उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति जीआर स्वामीनाथन ने कहा है कि भारतीय संविधान का अस्तित्व देश की जनसांख्यिकीय रूपरेखा पर निर्भर करता है और अगर इसमें बदलाव किया जाता है तो इसका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा। न्यायमूर्ति स्वामीनाथन ने एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए 1947 से 1949 के बीच संविधान के निर्माण और 1950 में इसके लागू होने का जिक्र करते हुए यह बात कही। न्यायाधीश ने कहा कि हम सभी के लिए, डॉ. बीआर आंबेडकर द्वारा तैयार संविधान ही अंतिम है और मैं गर्व और खुशी से यह बात कहता हूं। इसमें संवैधानिक नैतिकता है और हमें इससे आगे नहीं जाना चाहिए। उन्होंने देश की जनसांख्यिकी के संदर्भ में संविधान पर टिप्पणी करने से ठीक पहले कहा कि उनका विचार थोड़ा विवादास्पद हो सकता है, लेकिन वह इसकी बहुत ज्यादा चिंता नहीं करते क्योंकि वह पहले ही अपने एक निर्णय में इस बारे में उल्लेख कर चुके हैं। अगर इस संविधान को हमेशा की तरह बरकरार रखना है, तो मैं जोर देकर यह बात कहना चाहता हूं कि जब संविधान बनाया गया था, तो हमारी खुद की एक जनसांख्यिकीय रूपरेखा थी।
जब तक यह जनसांख्यकीय रूपरेखा बनी रहेगी, तब तक यह संविधान ज्यों का त्यों बना रहेगा; यदि यह जनसांख्यिकीय रूपरेखा बदल दी जाती है, तो यह संविधान अस्तित्व में नहीं रहेगा। इसलिए संविधान को हमेशा बरकरार रखने के लिए जनसांख्यिकीय रूपरेखा भी बरकरार रहनी चाहिए। उन्होंने कहा कि संविधान तभी बरकरार रह सकता है जब भारतीय धर्म और सम्प्रदाय से जुड़े लोग इसके दायरे में रहेंगे। उन्होंने कहा कि मैं एक न्यायाधीश हूं और मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कह सकता। आपको समझ जाना चाहिए। न्यायमूर्ति स्वामीनाथन की इस टिप्पणी पर सोशल मीडिया पर मिलीजुली प्रतिक्रिया मिल रही है। राज्यसभा सदस्य एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री कपिल सिब्बल ने ट्वीट किया कि न्यायाधीशों की ऐसी मानसिकता रही तो शायद संविधान नहीं बचेगा।