रेफ्रिजेरेटर्स से पहले हो चुका था आइसक्रीम का अविष्कार
लंदन । विश्व भर में रेफ्रिजेरेटर्स के घरों तक पहुंचने से पहले आइसक्रीम का अविष्कार हो चुका था। चीन का ग्लेशियर्स को कंबल से ढकने का प्रयोग इसी से प्रेरित है। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस ने 2019 में इस पर एक सफल प्रयोग किया था। एकेडमी के शोधकर्ताओं ने 500 वर्ग मीटर ग्लेशियर को खास तरह के जियोटेक्सटाइल कंबल से ढक दिया था।
प्रयोग से मिले नतीजों को देखने के बाद अब चीन इसका दायरा बढ़ा रहा है। चीन का मानना है कि इस तरीके से ग्लेशियर को पिघलने से रोका जा सकता है। चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेस के प्रयोग में पता चला कि ग्लेशियर के जिस हिस्से को कंबल से ढका गया, वो बिना ढके हिस्से की तुलना में ज्यादा मोटा था। बता दें कि चीन इस समय ग्लेशियर्स को कंबलों से ढक रहा है। जानकारी के मुताबिक, चीन के वैज्ञानिक वैंग का कहना है कि प्रयोग के दौरान पता चला कि कंबलों में सौर विकिरण को रोकने की क्षमता है।
वैंग के मुताबिक, जियोटेक्सटाइल कंबल ग्लेशियर की सतह से होने वाले हीट एक्सचेंज को भी रोक सकते हैं। वह कहते हैं कि तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर्स पूरी दुनिया के लिए चिंता का कारण बन गए हैं। अगर हमने इसे नहीं रोका तो जल्द ही दुनिया से ग्लेशियर्स का नामोनिशान मिट जाएगा। ऐसे में इन्हें पिघलने से बचाने के लिए पूरी दुनिया को सख्त कदम उठाने की जरूरत है। वैंग के मुताबिक, ग्लेशियर्स से जुड़े ज्यादामर शोध इसके पिघलने के कारणों को ढूंढने के लिए किए जा रहे हैं। उनका कहना है कि हमें ग्लेशियर्स को बचाने के लिए शोध करना चाहिए।
वैज्ञानिक वैंग के मुताबिक, अब उनकी शोध टीम चीन के पर्यटन के लिहाज से खास ग्लेशियरों पर हीट-ब्लॉकिंग परीक्षण करेगी। दरअसल, इन खास ग्लेशियर्स पर जलवायु परिवर्तन का असर स्पष्ट तौर पर नजर आ चुका है। जानकारी के मुताबिक, यह प्रयोग ग्लेशियर्स को बचाने का पहला मामला नहीं है। इससे पहले स्विट्जरलैंड में भी ऐसी ही कोशिश की जा चुकी है। एक रिपोर्ट कहती है कि साल 2009 में रोन ग्लेशियर्स के पास रहने वाले लोगों ने थर्मल कंबल का इस्तेमाल किया था।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, ग्लोबल वार्मिंग के कारण एशिया के हिंदूकुश हिमालय के ग्लेशियर्स 75 प्रतिशत तक पिघल सकते हैं। इससे क्षेत्र में बाढ़ आने का खतरा है। यही नहीं, इन ग्लेशियर्स के पिघलने पर पानी की कमी भी हो सकती है। हिंदूकुश हिमालय क्षेत्र 3,500 किमी क्षेत्र में फैला हुआ है। इसमें अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल और पाकिस्तान समेत कई देश शामिल हैं। अगर ऐसा हुआ तो क्षेत्र में रहने वाले 24 करोड़ लोगों पर बुरा असर पड़ सकता है।