आयकर विभाग पक्ष जाने बिना भेज रहा नोटिस
भोपाल । सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद आयकर विभाग द्वारा री-असेसमेंट के मामले जारी रखना हैं या नहीं, यह तय करने और धारा 148 ए के नोटिस 31 जुलाई तक भेजना थे। विभाग ने लगभग सभी प्रकरणों में करदाता के जवाब खारिज कर धारा 148 ए के तहत नया नोटिस जारी कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केस खोलने का कारण करदाता को उपलब्ध करवाने और उनकी आपत्ति को संज्ञान में लेकर निर्णय लेने का आदेश दिया था।
नोटिस 2 मई से 2 जून 2022 तक भेजे जाने थे। करदाता को जवाब 14 दिन में देना था और उन जवाबों के आधार पर विभाग को 31 जुलाई तक यह आदेश पारित करना था कि उक्त प्रकरण जारी रहेगा या नहीं। इंदौर सीए ब्रांच के पूर्व चेयरमैन सीए पंकज शाह ने बताया क्योंकि समय कम था, इसलिए विभाग ने कुछ मामलों में करदाता की आपत्ति देखे बिना ऑर्डर पास कर दिया। कई केस में करदाता को कर अपवंचन के आरोप की पूरी जानकारी भी उपलब्ध नहीं कराई। ऐसे में 8-10 साल पुराने केस खोलकर जानकारी मांगने से करदाता परेशान हो रहे, वहीं जानकारी देने के बाद भी केस ड्रॉप नहीं हुए।
विभाग द्वारा करदाता की दलीलें खारिज करने के पीछे उपयुक्त कारण नहीं बताया जा रहा और कई नॉन स्पीकिंग ऑर्डर पास किए जा रहे। यह समस्या कई करदाताओं को उठाना पड़ रही जिसके चलते उनके 8-10 साल पुराने मामले भी स्क्रूटनी में आ रहे। दरअसल, कोई भी अधिकारी इन केस को ड्रॉप करने की जिम्मेदारी नहीं लेना चाहता, इसलिए लगभग सभी केस में नोटिस जारी कर दिए गए। सीए मिलिंद वाधवानी ने बताया कि आयकर में धारा 148ए के तहत स्क्रूटनी की कार्रवाई शुरू करने के पहले जो प्रारंभिक नोटिस भेजने का प्रावधान लाया गया था, वह विफल होता नजर आ रहा। प्रारंभिक नोटिस का आशय यह था कि गलत जानकारी वाले या संतोषप्रद आय वाले केस की जांच कर बंद कर दें और वास्तविक कर चोरी वाले मामलों में गहराई से जांच की जाए।
उदाहरण के तौर पर एक करदाता का केस खोलने का कारण उसके द्वारा लिया लोन बताया जा रहा, जबकि उसने कोई लोन लिया ही नहीं था। इसी तरह तीन वर्ष से पुराने केस में 50 लाख से अधिक की टैक्स चोरी की जानकारी होने पर ही केस खोलना चाहिए था, जबकि कम राशि की टैक्स चोरी की संभावना में भी केस खोले जा रहे।