इंदौर ननि का फर्जीवाडा हो सकता है 400 करोड का
भोपाल । नगर निगम इंदौर में पकडाया फर्जीवाड़ा सिर्फ 100-150 करोड़ रुपये का नहीं बल्कि इससे कहीं ज्यादा बड़ा है। अकेले नाला टेपिंग के नाम पर ही 400 करोड़ रुपये से ज्यादा का फर्जीवाड़ा होने की आशंका है। इसके अलावा शहर में जल वितरण लाइन डालने के नाम पर हुआ फर्जीवाड़ा अलग है। इसके बाद से नगर निगम में सन्नाटा पसरा हुआ है। अधिकारी और कर्मचारी इसे आचार संहिता का असर बता रहे हैं, लेकिन अंदर की बात यह है कि हर कोई इस बात से आशंकित है कि कहीं फर्जीवाड़े में उसका नाम न आ जाए। नगर निगम के अधिकारी अब तक इस मामले में यह कहकर खुद को बचा रहे थे कि पुलिस ने मूल फाइलें जब्त नहीं की हैं। फोटोकॉपी के आधार पर कार्रवाई नहीं की जा सकती, लेकिन जांच में नगर निगम की टीम और पुलिस के हाथ लगी दूसरी फाइलों पर अधिकारियों के असल हस्ताक्षर हैं। बावजूद इसके अब तक किसी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई। जांच में यह बात भी सामने आई है कि जिन ठेकेदारों के नाम अब तक फर्जीवाड़े में सामने आए हैं, वे सिर्फ मोहरे हैं। फर्जीवाड़े के पीछे नगर निगम के ही कई अधिकारियों के नाम सामने आए हैं। ये अधिकारी ठेकेदारों के माध्यम से कंपनी बनाकर निगम के ठेके लेते हैं और इसमें होने वाले मुनाफे का बड़ा हिस्सा खुद रखते हैं। निगम में यह फर्जीवाड़ा वर्ष 2016 से चल रहा है। बताया जा रहा है कि नगर निगम की तर्ज पर स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में भी कई फर्जीवाड़े हुए हैं। शहर की पहली आदर्श सड़क यानी बियाबानी इसका उदाहरण है। यह सड़क आज भी जगह-जगह छलनी है। प्लानिंग के नाम पर करोड़ों खर्च किए गए लेकिन बगैर प्लानिंग बगैर ड्रेनेज लाइन डाले सड़क बना दी गई। शिकायतों के बाद तत्कालीन निगमायुक्त ने लंबे समय तक स्मार्ट सिटी का काम देख रहे एक इंजीनियर को नगर निगम भेज दिया था। सूत्रों की माने तो इंदौर नगर निगम के जिस इंजीनियर की कार से फर्जीवाड़े से जुड़ी फाइलें चोरी होने की बात कही जा रही है, उसका दो माह पहले ही इंदौर से ट्रांसफर हो चुका है, लेकिन निगम ने उसे अब तक रिलीव नहीं किया। यह इंजीनियर लंबे समय से नगर निगम के ड्रेनेज विभाग का काम देख रहे हैं और इसकी रग-रग से वाकिफ हैं। फर्जीवाड़े से जुड़ी मूल फाइलें चोरी होने की बात भी किसी के गले नहीं उतर रही। सीसीटीवी फुटेज में कार तो खड़ी नजर आ रही है, लेकिन चोरी नजर नहीं आ रही। इतना ही नहीं, यह बात भी किसी के समझ नहीं आ रही कि फर्जीवाड़े की फाइलें निगम से बाहर लाई क्यों गई थीं और इन फाइलों को लेकर ये इंजीनियर कहां जा रहे थे?