भोपाल । प्रदेश सरकार की कोशिश है कि जिन जिलों में मडिकल कॉलेज नहीं हैं, उन जिलों में पीपीपी (पब्लिक प्रायवेट पार्टनरशिप) मोड पर मेडिकल कॉलेज खोले जाएं। इसके लिए सरकार ने वकायदा विज्ञापन भी जारी किया था, लेकिन किसी भी निवेशक ने इसमें रूचि नहीं दिखाई है। इसलिए सरकार ने अब सरकार ने पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने के नियमों में बदलाव करने का निर्णय लिया है। सरकार ऐसे नियम बनाना चाहती है जिससे अधिक से अधिक निवेशक पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने आगे आ सकें।
गौरतलब है कि वर्तमान में प्रदेश में कुल 32 मेडिकल कॉलेज (प्रायवेट मिलाकर) संचालित हैं, जिनमें एमबीबीएस सीटों की संख्या 5,450 है। वर्तमान में भोपाल, इंदौर, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा, सागर, शहडोल, विदिशा, रतलाम, दतिया, खंडवा, शिवपुरी, छिंदवाड़ा व सतना में मेडिकल कॉलेज संचालित है। चिकित्सा शिक्षा विभाग के मुताबिक प्रदेश में वर्तमान में 14 सरकारी मेडिकल कॉलेज संचालित हैं और 12 सरकारी मेडिकल कॉलेजों के निर्माण को प्रारंभिक स्वीकृति मिल चुकी है। इनमें से एक (बुधनी) को छोडक़र बाकी मेडिकल कॉलेज जिला मुख्यालय पर स्थित हैं। इस तरह सरकार 30 जिलों में जरूरत के हिसाब से पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज की स्थापना की जा सकती है। इस दिशा में सरकार ने पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए कदम बढ़ाया था। फिलहाल सरकार की मंशा को बड़ा झटका लगा है। सरकार के फैसले के 4 महीने बाद भी किसी भी निवेशक ने पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज के निर्माण में रुचि नहीं दिखाई है।


दो महीने पहले जारी किया था विज्ञापन


गौरतलब है किचिकित्सा शिक्षा संचालनालय ने पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज के निर्माण को लेकर दो महीने पहले विज्ञापन जारी किया था, लेकिन अब तक एक भी निवेशक आगे नहीं आया है। यह बात सामने आई है कि निवेशकों को कलेक्टर रेंट पर जमीन दिया जाना पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने की राह में सबसे बड़ी रुकावट बन रहा है। इसे देखते हुए अब सरकार नियमों में संशोधन करने की तैयारी कर रही है। डॉ. मोहन यादव कैबिनेट ने गत 4 मार्च को पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी। प्रस्ताव के अनुसार पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज उन जिलों में खोले जाने हैं, जहां वर्तमान में मेडिकल कॉलेज नहीं हैं। प्रस्ताव के अनुसार मेडिकल कॉलेज खोलने वाले निवेशक को सरकारी जिला अस्पताल में 25 प्रतिशत बंड के उपयोग करने का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा उन्हें कोई बड़ी रियायत नहीं दी जा रही है। स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मेडिकल कॉलेज खौलने के लिए करीब 500 करोड़ रुपए का निवेश चाहिए। चूंकि सरकार ने निवेशकों को अस्पताल में 25 प्रतिशत बेड देने की बात कही है, इसलिए अस्पताल के निर्माण पर आने वाला खर्च कुछ कम हो जाएगा। सबसे ज्यादा राशि जमीन खरीदने और भवन के निर्माण पर खर्च होती है। एक मेडिकल कॉलेज खोलने के लिए न्यूनतम 20 एकड़ जमीन चाहिए। ऐसे ही कॉलेज संचालन के लिए फैकल्टी होना सबसे जरूरी है।


मेडिकल कॉलेज खोलने में कई समस्याएं


प्रदेश में पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने में कई तरह की समस्याएं आ रही हैं। प्रदेश में डॉक्टरों की भारी कमी के चलते सरकारी कॉलेजों के लिए ही फैकल्टी नहीं मिल रही है, ऐसे में प्रायवेट मेडिकल कॉलेजों के लिए पर्याप्त फैकल्टी जुटा पाना संभव नहीं है। यही वजह है कि निवेशक पीपीपी मोड पर मेडिकल कॉलेज खोलने में रुचि नहीं दिखा रहे हैं। चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने जब इस बात की समीक्षा की कि मेडिकल कॉलेज खोलने में निवेशक वा संस्थाएं रुचि क्यों नहीं दिखा रहे है, तो सामने आया कि कलेक्टर रेट पर जमीन दिए जाने के कारण निवेशक आगे नहीं आ रहे हैं। प्राइम लोकेशन पर कलेक्टर रेट पर जमीन खरीदने में निवेशकों को बड़ी रकम खर्च करना पड़ेगी। प्रस्ताव में जिला अस्पताल के स्टाफ का वेतन निवेशक द्वारा देने का भी प्रावधान किया गया है। विभिन्न पहलुओं पर विचार-विमर्श के बाद सरकार निवेशकों को रिवायती दरों पर जमीन देने के साथ ही स्टाफ के वेतन में रियायत देने और कुछ अन्य सुविधाएं देने पर विचार कर रही है। इस संबंध में जल्द ही अंतिम निर्णय लिया जाएगा। इस संबंध में स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा राज्य मंत्री नरेंद्र शिवाजी पटेल और विभागीय प्रमुख सचिव विवेक पोरवाल से बात करने की कोशिश की गई, लेकिन वै इस विषय पर बात करने से बचते नजर आए।