लोक कलाओं की हमारी परम्पराओं को बचाए रखना जरूरी-मिश्र
जयपुर । राज्यपाल कलराज मिश्र ने राजभवन में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् द्वारा आयोजित ‘कला संवाद’ कार्यक्रम में संबोधित करते हुए कहा है कि आधुनिकता के शोरगुल में लोक कलाओं की हमारी परम्पराओं को बचाए रखना जरूरी है। उन्होंने लोक कलाओं की पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही विरासत को समय संदर्भों के साथ संरक्षित और विकसित करने का आह्वान किया है।
उन्होंने कहा कि जिस तरह से हमारे यहां शास्त्रीय नृत्य और संगीत के घराने हैं, उसी तरह राजस्थान में लोक कलाओं के घराने हैं। इन घरानों ने राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत को पीढ़ी दर पीढ़ी सहेजकर रखा है। उन्होंने ऐसे कलाकारों को सरकार और समाज द्वारा मिलकर सहयोग करने और सांस्कृतिक विरासत के दस्तावेजीकरण के लिए भी मिलकर कार्य करने का आह्वान किया। राज्यपाल कहा कि किसी भी सभ्यता के अस्तित्व और सांस्कृतिक अस्मिता की जब भी बात की जाती है तो सबसे पहले कलाओं के लोक स्वरूपों पर ही विचार किया जाता है। उन्होंने अल्लाह जिलाई बाई और उनकी मांड राग की चर्चा करते हुए कहा कि विदेषों तक ‘पधारो म्हारे देष’ के जरिए राजस्थान की लोक संस्कृति उस महान कलाकार के जरिए ही पहुंची। उन्होंने राजस्थान की ढोली, मिरासी, दमामी, लंगे, मांगणियार, कालबेलिया आदि जातियों और उनके कला योगदान को महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि इनकी कला का प्रभावी रूप में दस्तावेजीकरण भी किया जाना चाहिए। भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद् के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे ने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि राजस्थान के राजभवन से लोक कलाकारों से संवाद की पहल की गयी है। उन्होंने कहा कि भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद का प्रयास है कि सुदूर देषों तक भारतीय कलाओं के जरिए हमारी संस्कृति का प्रसार हो। उन्होंने देष के तंतु वाद्यों की परम्परा को विदेषों में भी संरक्षित किए जाने और इनके लिए वातावरण निर्माण हेतु कलाकारों के सहयोग का भी आह्वान किया।