राजधानी में सूदखोरों का मकडज़ाल
भोपाल । कठोर कानून के बाद भी राजधानी सहित गांवों में सूदखोर हावी है। कुछ वर्षों से कोरोना काल में बीमारी से जितना लोग परेशान थे। उससे ज्यादा सूदखोरों के जाल में लोग फंसने से लोगों को परेशानी हो रही हैं। शहर से लेकर देहात तक सूदखोरों का नेटवर्क फैला हुआ है। हाल यह है कि शहर के आर्थिक स्थिति से तंग जरूरत मंद लोग कर्ज में गड़ते चले जा रहे हैं। घर गृहस्थी का सामान तक बेचने को मजबूर हैं। गांव के किसान फसल बेचकर कर्च चुका रहे हैं, लेकिन सूदखोरों का ब्याज खत्म नहीं हो रहा है। शहर में इस तरह के एक नहीं कई मामले हैं। कई मामलों में पुलिस-प्रशासन के पास पीडि़तों ने सूदखोरों से बचाने की गुहार तक लगाई है। कई बार सूदखोरों के चंगुल में फंसकर लोग अपनी जान तक गंवा चुके हैं।
5 से 10 प्रतिशत महीने का लेते हैं ब्याज
सूदखोर लोगों को पांच से दस प्रतिशत महीने ब्याज दर पर पैसा देते हैं। इनमें ज्यादातर अवैध रूप से सूदखोरी का धंधा कर रहे हैं। इनके चंगुल में फंसे कुछ लोग तो ऐसे हैं, जिन पर इस कदर ब्याज चढ़ गया है कि अब उसे चुकाना उनके लिए मुश्किल है।
अवैध तरीके से कर रहे ब्याज का धंधा
जिले में अवैध रूप से यह सूदखोरी का धंधा करने वालों की संख्या हजारों में है। जिनका सूदखोरी का धंधा बेरोकटोक चल रहा है। सूदखोरों के चंगुल में फंसने के बाद कम ही कर्जदार उनके जंजाल से बाहर आ पाते हैं। कर्जदारों से मिली जानकारी के अनुसार, सूदखोर जिनको ब्याज में पैसे देते हैं। उनके एटीएम और पासबुक अपने पास रख लेते हैं। एटीएम के पासवर्ड की जानकारी भी ले लेते हैं। कुछ सरकारी कर्मचारी जो इनके चंगुल में फंसे हैं। उनकी तनख्वाह भी सूदखोर एटीएम से भी निकाल लेते हैं। यदि सूदखोर पकड़ाते हैं तो सैकड़ों एटीमए और पासबुक इनके पास मिल सकती हैं।
हथिया लेते हैं प्रॉपर्टी
सूदखोर रकम और ब्याज की वसूली के नाम पर कर्जदार को जमकर लुटते हैं। कई बार तो ब्याज इतना ज्यादा हो जाता है कि कर्जदार का जेवर, मकान, प्लाट तक सूदखोर हथिया लेते हैं। बेहद जरूरतमंद व्यक्ति ही सूदखोर से कर्ज लेता है। इसलिए उस पर कर्ज चुकाने का दबाव रहता है। कर्जदार तो पूरी रकम चुकाना चाहता है, लेकिन ब्याज की रकम ही इतनी ज्यादा होती है कि उसकी कमाई इसे चुकाने में ही चली जाती है। सिर पर कर्ज होने की वजह से वह पुलिस प्रशासन से शिकायत करने का जोखिम उठाने में कतराता है।