विधानसभा का मानसून सत्र 13 सितंबर से
भोपाल । मध्यप्रदेश में विधानसभा का मानसून सत्र 25 जुलाई से शुरू होने वाला था। निकाय चुनाव को देखते हुए मानसून सत्र को टाल दिया गया है। अब मानसून सत्र 13 सितंबर से 17 सितंबर तक आयोजित होगा। इस बार भी महज पांच दिन के लिए ही सत्र बुलाया गया है। मानसून सत्र में सरकार वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए प्रथम अनुपूरक अनुमान बजट प्रस्तुत करेगी। इसके अलावा अध्यादेश के स्थान पर मध्य प्रदेश नगर पालिक विधि और भू-राजस्व संहिता में संशोधन के लिए विधेयक प्रस्तुत किए जाएंगे। पांच दिवसीय सत्र में अशासकीय संकल्प पर चर्चा होगी। प्रश्नकाल, शून्यकाल और ध्यानाकर्षण सूचनाओं पर चर्चा कराने के बाद अन्य कार्य किए जाएंगे।
मानसून सत्र की तारीख आगे बढ़ाते हुए इसे 13 सितंबर से शुरू किया जाएगा। इससे पहले विधानसभा का मानसून सत्र 25 जुलाई से 29 जुलाई के बीच होना था, लेकिन नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव के चलते कांग्रेस ने भी मानसून सत्र को आगे बढ़ाने की मांग की थी। कांग्रेस की इस मांग पर सरकार ने भी सहमति जताई थी, जिसके बाद राज्यपाल को सत्र आगे बढ़ाने के लिए पत्र लिखकर अनुरोध किया गया था। अब राज्य सरकार ने भी 13 सितंबर से 17 सितंबर के बीच सत्र आयोजित करने के लिए राज्यपाल से अनुरोध किया है। सूत्रों के मुताबिक अगस्त के दूसरे सप्ताह में अवकाश की भरमार है। तीसरे सप्ताह में विधानसभा के अध्यक्ष और प्रमुख सचिव को कनाडा में आयोजित सम्मेलन में भाग लेने जाना है। अगस्त में सत्र शुरू होने की संभावना कम थी। इसलिए विधानसभा के मानसून सत्र को सितंबर में रखा गया है।
इससे पहले जब 25 जुलाई से 29 जुलाई तक सत्र आयोजित करने की तारीख घोषित हुई थी तब मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस ने मानसून सत्र की अवधि को बढ़ाकर 20 दिन करने की मांग की थी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष डा. गोविंद सिंह ने कहा था कि विधानसभा का मानसून सत्र कम से कम 20 दिन रखा जाए, ताकि मानसून सत्र में जनहित के मुद्दों पर चर्चा की जा सके। उन्होंने मानसून सत्र को महज पांच दिन रखने पर आपत्ति व्यक्त करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री ने तानाशाही रवैया अपनाते हुए विपक्ष और जनता की आवाज को दबाने का काम किया और लोकतंत्र का गला घोटने का काम किया है। गोविंद सिंह ने यह भी कहा था कि जब से भाजपा की सरकार बनी है तब से सदन की बैठकें कम हो रही हैं, जबकि संविधान में निहित भावनाओं के अनुरूप संविधान विशेषज्ञों ने कम से कम 60 से 75 बैठकें प्रतिवर्ष आहूत करने की सिफारिशें की हैं।