मुबारक माहे रमजान के तीसरे अशरे का आगाज
भोपाल। इस्लाम धर्म के सबसे पाक रहमतो, बरकतो के मुबारक महीने रमजान का पहला दूसरा अशरा जो कि ‘रहमत’ का होता है, शुक्रवार को पूरा हो गया। तीसरा अशरा जो जहन्नुम की आग से खलासी का कहलाता है, शुक्रवार की शाम यानी 20 रमजान को इफ्तार के बाद से शुरू हो गया है। रमजान माह को तीन हिस्सों में बांटा गया है। जो पहला, दूसरा और तीसरा अशरा कहलाता है। अशरा अरबी का दस नंबर होता है। इस तरह रमजान के पहले दस दिन पहला अशरा, दूसरे 10 दिन दूसरा अशरा और आखरी के सारे दिन तीसरे अशरे मे शामिल होते है। इनम पहला अशरा रहमत का होता है, दूसरा अशरा मगफिरत यानी गुनाहों की माफी का होता है और तीसरा अशरा जहन्नुम की आग से खुद को बचाने का होता है। दूसरे अशरे के बाद अब 21 से 29 या 30 रोजे तक तीसरा अशरा मनाया जाएगा। मुस्लिम उलेमाओ का कहना है, कि इस अशरे में अल्लाह तआला की कसरत से इबादत करने से नेक बंदो को जहन्नम कि आग से आजादी मिलती है। तीसरे ओर रमजान मुबारक के आखरी अशरे मे ऐतेकाफ भी किया जाता है। अनेक मुस्लिम मर्द और औरतें ऐहतेफाक में बैठते हैं। बता दें, कि एहतकाफ में मुस्लिम पुरुष मस्जिद के कोने में आखरी अशरे मे एक जगह बैठकर अल्लाह की इबादत करते हैं, जबकि महिलाएं घरो के कोने या अलग कमरे मे ऐतेकाफ का अहतेमाम कर इबादत करती हैं। तीसरे अशरे के आगाज के साथ ही मस्जिदों में ऐतेकाफ का सिलसिला भी शुरू हो गया है। रमजान में 20वें रोजे के खोलने के बाद से ही ईद का चांद दिखने तक नेक बदे दुनिया की सारी मसरुफियत ओर अपने कामो को छोडकर केवल मस्जिद में ही रहकर अपने रब की इबादत करते है, जिसे ऐतेकाफ कहा जाता है। मुस्लिम उलेमा हाफिज अब्दुल हफीज ने ऐहतेकाफ की अहमियत पर रोशनी डालते हुए बताया कि जिस बस्ती मे भी मस्जिद तामीर हो वहॉ एक शख्स का ऐतेकाफ मे बैठना जरुरी है, ओर चाहे तो ज्यादा भी लोग बैठ सकते है, यदि बस्ती में से कोई एक भी शख्स ऐतेकाफ में बैठकर रब की इबादत करे तो उस बस्ती के लोगों की ओर से ऐतेकाफ का हक अदा हो जाता है, ओर बैठने वाले को रब की ओर से आखरत मे कीमती इनामो को दिये जाने का वादा किया गया है, वही पूरी बस्ती पर इसकी वजह से रब की रहमत बरसती है। तीसरे अशरे मे ही ताक राते यानि शब-ए-कद्र भी आएगी। जो अपने रब से अपनी सारी दुआऐ कुबूल करवाने ओर अपने गुनाहों की माफी मांगने ओर सारी जिदंगी के लिये बुरे कामो से तौबा करने का एक बड़ा जरिया है। मुस्लिम धर्मगुरुओ के अनुसार आखरी अशरे मे आने वाली शबे कद्र की एक रात की जाने वाली इबादत का सवाब आम रातो मे की जाने वाली हजार रातो की इबादतो से बढकर है। इस अशरे में रोजेदारों को अपने कसरत से अपने गुनाहों की माफी मांगनी चाहिए। इस अशरे में जाने अनजाने मे किये गये गुनाहो की तौबा कुबूल की जाती है, इसलिए इस अशरे में बदों को अपने गुनाहों के लिए माफी तलब करनी चाहिए। मुस्लिम उलेमाओ के मुताबिक रमजान-उल-मुबारक में हर नेकी का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है, ओर हर नवाफिल का सवाब सुन्नतों के बराबर और हर सुन्नत का सवाब फर्ज के बराबर कर दिया जाता है। इस तरह सभी फर्ज नमाजो का सवाब 70 गुना कर दिया जाता है, यानि इस माहे-मुबारक में रब की रहमत अपने नेक बंदो पर आसमान से बरसात की तरह बरसती है। अब ईद का मुबारक चॉद नजर आने पर तीसरा अशरा खत्म होगा, जिसके अगले दिन ईद उल फितर मनाई जायेगी।