भारत के रिजर्व बैंक ने बढ़ाया अपनी गोल्ड होल्डिंग को 5 टन
एक वक्त था, जब सोने को लेकर महिलाओं का आकर्षण सबसे अधिक होता था। लेकिन, अब दुनियाभर के केंद्रीय बैंक गोल्ड को लेकर दीवानगी के मामले में महिलाओं को भी पीछे छोड़ रहे हैं। दरअसल, भू-राजनीतिक तनाव के साथ महंगाई और मंदी जैसे खतरों की वजह से सोना केंद्रीय बैंकों की आंख का तारा बन गया है।
कितना सोना खरीद रहे केंद्रीय बैंक
वर्ल्ड गोल्ड काउंसिल की गोल्ड डिमांड ट्रेंड्स रिपोर्ट के अनुसार, 2024 की पहली तिमाही यानी जनवरी से मार्च बीच दुनियाभर में सोने की मांग सालाना आधार पर 3 फीसदी बढ़ी है। यह गोल्ड डिमांड के लिहाज से 2016 के बाद सबसे मजबूत पहली तिमाही है।
मार्च में सेंट्रल बैंक ऑफ तुर्किये सोने का सबसे बड़ा खरीदार रहा। उसने अपने गोल्ड रिजर्व में 14 टन का इजाफा किया है। भारत के रिजर्व बैंक ने अपनी गोल्ड होल्डिंग को 5 टन बढ़ाया है। वहीं, पीपल्स बैंक ऑफ चाइना ने भी अपने गोल्ड रिजर्व में 5 टन और जोड़ा है।
पीपल्स बैंक ऑफ चाइना का गोल्ड रिजर्व 2,250 टन के पार पहुंच चुका है। भारत की बात करें, तो रिजर्व बैंक का गोल्ड भंडार अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। अप्रैल की शुरुआत में RBI के पास 822.1 टन गोल्ड था।
सोने की खरीद क्यों बढ़ा रहे केंद्रीय बैंक
दरअसल, कोरोना के बाद वैश्विक परिस्थितियां तेजी से बदली हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ इजरायल का अरब देशों से तनाव ने संकट को और ज्यादा बढ़ा दिया है। इससे वैश्विक मंदी तक की आशंका जताई जाने लगी। यही वजह है कि केंद्रीय बैंक लगातार सोने की खरीद बढ़ा रहे हैं, ताकि किसी भी बड़े आर्थिक संकट का मुकाबला कर सकें।
महंगाई से भी बचाता है गोल्ड
गोल्ड को मुद्रास्फीति के खिलाफ भी सबसे कारगर हथियार माना जाता है। अगर रिजर्व बैंकों के पास ज्यादा गोल्ड रिजर्व रहेगा, तो वे महंगाई के खिलाफ ज्यादा बेहतर तरीके से रणनीति बना सकेंगे। गोल्ड के साथ डिफॉल्ट जैसा कोई जोखिम भी नहीं जुड़ा होता। उलटे वक्त के साथ इसकी वैल्यू हमेशा से बढ़ती आई है।
इसे आप अपने इन्वेस्टमेंट पोर्टफोलियो की तरह समझ सकते हैं। हर कोई अपने पोर्टफोलियो में विविधता चाहता है, ताकि जोखिम को घटाया जा सके। यही वजह है कि लोग शेयर बाजार, बॉन्ड के साथ सोने में भी निवेश करते हैं, ताकि शेयर बाजार या बॉन्ड मार्केट में मंदी रहे, तो सोने वाला निवेश उन्हें संभाल ले।
डॉलर पर निर्भरता घटाने की कोशिश
डॉलर ने हमेशा से दुनिया की अर्थव्यवस्था को निर्धारित करने में अहम भूमिका निभाई। इसे सोने के बाद दूसरी ग्लोबल करेंसी तक कहा गया। लेकिन, अमेरिका के साथ खट्टे-मीठे रिश्ते के चलते अब दुनियाभर के देश डॉलर पर अपनी निर्भरता कम करने की कोशिश कर रहे हैं। कई देशों ने तो एकदूसरे की करेंसी में व्यापार भी शुरू कर दिया।
गोल्ड रिजर्व को बढ़ाना इस दिशा में अगला कदम माना जा सकता है। अमेरिका अक्सर तनावपूर्ण रिश्तों की सूरत में दूसरे देशों पर आर्थिक प्रतिबंध लगाता है। ऐसे में अगर गोल्ड रिजर्व अधिक रहेगा, तो उसके प्रतिबंधों का तोड़ निकालने में मदद मिलेगी।