पशुपालकों के साथ खड़ी है राज्य सरकार-सीएम
जयपुर । मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए लम्पी स्किन रोग की रोकथाम को लेकर समीक्षा बैठक लेते हुए कहा कि राज्य सरकार पशुधन के संरक्षण और संवर्धन के लिए कृतसंकल्पित है। प्रदेश के कई जिलों के पशुओं में लम्पी स्किन रोग का संक्रमण तेजी से फैला है, लेकिन जल्द से इस पर नियंत्रण पा लिया जाएगा। सरकार द्वारा दवाईयों, चिकित्सकों, एंबुलेंस सहित अन्य आवश्यकताओं के लिए धन की कमी नहीं आने दी जाएगी। राज्य सरकार हर समय पशुपालकों के साथ खड़ी है। उन्होंने कहा कि सभी के सहयोग से हम इस संक्रमण से भी निजात पा सकेंगे।
गहलोत ने कहा कि कोरोना काल में राजस्थान के कोरोना प्रबंधन की जिस तरह पूरे देश में चर्चा रही, उसी तरह लम्पी स्किन रोग पर भी सभी के सहयोग से प्रभावी नियंत्रण कर लिया जाएगा। मुख्यमंत्री ने कहा कि रोकथाम के लिए विधायक, महापौर, जिला प्रमुख, प्रधान, सरंपचों सहित सभी जनप्रतिनिधिगणों की महत्वपूर्ण भूमिका है। वे अपने क्षेत्रों में दौरा करके पशुपालकों को जागरूक करें। गहलोत ने जिला प्रभारी मंत्रियों को अपने-अपने जिलों में जाकर स्थिति जानने और आमजन को जागरूक करने के निर्देश दिए। उन्होंने प्रभावित जिलों के जनप्रनिधियों से कहा कि वे स्थानीय पशुपालकों, किसानों, दुग्ध विक्रेताओं, गौशाला संचालकों के साथ बैठकें कर उन्हें जागरूक करें। मुख्यमंत्री ने संक्रमित पशुओं के उपचार में जुटे चिकित्सकों, वेटेनरी स्टॉफ और विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों का हौसला बढ़ाया। इनकी सजगता और सतर्कता से ही संक्रमण और मृत्यु दर में कमी आई है। उन्होंने कहा कि जिस तरह कोरोना काल में विधायकों द्वारा अपने एमएलए फंड से सहायता राशि दी गई, उसी तरह अब भी जारी करें। उन्होंने कहा कि गौवंश हमारा सम्मान है। सरकार द्वारा गौशालाओं के लिए अनुदान की अवधि को 6 माह से बढ़ाकर 9 माह कर दिया गया है। गोपालन विभाग बनाकर गौवंश संवर्धन के लिए लगातार कार्य किए जा रहे हैं।
प्रदेश में बढ़ रहा है रिकवरी रेट-पशुपालन मंत्री मुख्यमंत्री निवास से जुड़े कृषि एवं पशुपालन मंत्री लालचंद कटारिया ने कहा कि लम्पी स्किन रोग की जानकारी मिलते ही विभाग रोकथाम में जुट गया था। चिकित्सकों और कर्मचारियों की लगातार मेहनत से सुधार आ रहा है और प्रदेश में रिकवरी रेट बढ़ा है। बीकानेर विश्वविद्यालय की टीमों द्वारा प्रभावित क्षेत्रों में दौरा किया जाएगा। रोग से बचाव में स्वयंसेवी संस्थाएं, भामाशाह और आमजन सहयोग कर रहे हैं। लोग पारंपरिक तरीके से भी उपचार कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि 1 अगस्त को संक्रमण दर 21.20 प्रतिशत थी, जो कि घटकर सिर्फ 5.61 प्रतिशत ही रह गयी।