तेरह महिला बंदियों के साथ दो महिला प्रहरियों ने की मारपीट
साठ हजार रू राहत राशि में से सभी महिला बंदियों को समान राहत राशि एक माह में अदा करें आयोग ने की अनुशंसा
गुना मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने जिला जेल गुना के महिला वार्ड में पदस्थ दो महिला जेल प्रहरियों द्वारा मिलकर तेरह महिला बंदियों के साथ बुरी तरह मारपीट करने के मामले में सभी तेरह महिला बंदियों को राहत राशि के रूप में प्रत्येक को समान रूप से साठ-साठ हजार रूपये एक माह में अदा करने की अनुशंसा राज्य शासन को की है। आयोग के प्रकरण क्रमांक/3135/गुना/2020 में आयोग ने पाया कि दो व तीन मई 2020 की दरम्यानी रात को जेल प्रहरी सुश्री प्रियंका भार्गव द्वारा बंदिनी सुखिया बाई को नींद लग जाने के कारण उसे उठाया और तीन मई 2020 को दोपपर में महिला प्रहरी प्रियंका भर्गव और रीना मिश्रा द्वारा मिलकर सुखिया बाई की बेरहमी से मारपीट की गई तथा उसे बचाने आये अन्य बारह बंदियों के साथ भी मारपीट की गई। बंदियों के साथ माारपीट करने के अलावा दो महिला प्रहरियों द्वारा घटना के तथ्यों को छुपाया गया। साथ ही वरिष्ठ अधिकारियों के संज्ञान में भी यह घटना लाई गई। इस वजह से दोनों महिला प्रहरियों को 12 मई 2020 को निलंबित कर दिया गया। मामले की निरंतर सुनवाई उपरांत मध्यप्रदेश मानव अधिकार आयोग ने राज्य शासन को बंदिनी सुखिया बाई तथा अन्य महिला बंदिनी कमलेश पति नरेश, बबीता पति देवेंद्र केवट, प्रिया पति जीवन नामदेव, अंजू पति विजय, पूजा पुत्री रामदेव, अर्जुनबाई पति कृपाणसिंह, हेमलता पति रामदेव, धनबाई पति रामलाल, रचना पति स्वर्गीय सोनू कुशवाह, ब्रह्मबाई पुत्री तखतसिंह एवं कांताबाई पति शिवचरण कुशवाहा की जेल अभिरक्षा में की गई मारपीट के कारण उनके जीवन जीने के अधिकार, स्वास्थ्य व सुरक्षा के अधिकार के घोर हनन के मुआवजे के रूप में साठ हजार रूपये राहत राशि में से प्रत्येक बंदिनी को एक समान रूप से राहत राशि का भुगतान अगले एक माह में किया जाये। राज्य शासन चाहे, तो यह राहत राशि दोषी जेल अधिकारी/कर्मचारियों से वसूल कर सकता है। अपनी अनुशंसा में आयोग ने यह भी कहा है कि दोषी अधिकारी जिला जेल गुना के तत्कालीन जेल उप अधीक्षक श्री दिलीप सिंह के विरूद्ध स्थापित विभागीय जांच की कार्यवाही शीघ्रता से पूर्ण की जाये। यदि जेल अभिरक्षा में इस प्रकार मारपीट से चोटिल होने की घटना होती है, तो आहत/पीड़ित का उसी दिनांक को चिकित्सकीय परीक्षण व उपचार कराया जाये तथा इस प्रकार के प्रकरणों की घटना की जानकारी शीघ्र जिला दण्डाधिकारी एवं वरिष्ठ जेल अधिकारियों को भी देने के दिशा-निर्देश जारी किये जायें।