क्या ममता के गढ़ में चलेगा सिंधिया का जादू
भोपाल । मप्र में भाजपा को सत्ता वापस दिलवाने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को पार्टी ने अब ममता बनर्जी के गढ़ यानी पश्चिम बंगाल में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी से जिम्मेदारी मिलने के बाद सिंधिया ने पश्चिम बंगाल का दौरा कर स्थिति का जायजा ले लिया है। ऐसे में सवाल उठने लगा है की अपने गढ़ में पार्टी के महापौर प्रत्याशी का जीता पाने में असफल रहे सिंधिया क्या ममता के गढ़ में जादू दिखा पाएंगे। गौरतलब है कि ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम बंगाल में प्रवास मंत्री नियुक्त किया गया है। उन्हें दमदम लोकसभा सीट की जिम्मेदारी दी गई है, जहां भाजपा पिछले चुनाव में हार गई थी। संगठन की तरफ से जिम्मेदारी मिलने के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने काम संभाल लिया है। उन्होंने कोलकाता पहुंचने के बाद संगठन से जुड़े अलग-अलग लोगों से संवाद किया है। साथ ही दक्षिणेश्वर से बारानगर तक मेट्रो में यात्रा की है। कुछ युवाओं के ग्रुप के साथ भी मंत्री ने बात की है। इसके बाद पश्चिम बंगाल सरकार पर जमकर हमला किया है।
सिंधिया के गढ़ में भाजपा 58 साल बाद हारी
मप्र नगरीय निकाय चुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया के गढ़ में भाजपा हार गई। ज्योतिरादित्य सिंधिया के गृह नगर ग्वालियर में भाजपा 58 साल बाद चुनाव हार गई है। इसके बाद से वह विरोधियों के निशाने पर हैं। विरोधियों के साथ-साथ कुछ अपने लोग भी ज्योतिरादित्य सिंधिया पर सवाल उठा रहे हैं। नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल के प्रभारी और भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहा था कि ग्वालियर की हार हमारे लिए अलार्मिंग है। पिछले दिनों एक ग्रुप के आने के बाद वहां हम मजबूत हुए थे फिर भी चुनाव हारे हैं। कैलाश के हमले के बीच ज्योतिरादित्य सिंधिया को पश्चिम बंगाल में बड़ी जिम्मेदारी मिल गई है। पिछले चार सालों के रेकॉर्ड को देखते हुए यह सवाल है कि क्या ममता बनर्जी के गढ़ में ज्योतिरादित्य सिंधिया का जादू चलेगा।
भाजपा को कितनी सफलता मिली
दरअसल, मप्र की राजनीति में ज्योतिरादित्य सिंधिया की हमेशा सुर्खियों में रहते हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया मार्च 2020 में भाजपा की सदस्यता ग्रहण की थी। ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने के बाद कांग्रेस के 22 से अधिक सदस्यों ने भी प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। अक्टूबर 2020 में 28 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुए थे, इनमें चार सीट विधायकों के निधन से खाली हुए थे। वहीं, 24 सीट ज्योतिरादित्य सिंधिया के साथ आए विधायकों के थे। उपचुनाव में बीजेपी 28 में से 19 सीटों पर जीत हासिल की। इस चुनाव में भाजपा को 67 फीसदी सफलता मिली। इस परिणाम को बहुत बेहतर तो नहीं कहा जाता था लेकिन सिंधिया के आने से भाजपा की ताकत जरूर विधानसभा में बढ़ गई थी। उपचुनाव में ज्योतिरादित्य सिंधिया की करीबी इमरती देवी समेत चार लोग हार गए थे।
ग्वालियर मेयर चुनाव में भी नहीं चला जादू
वहीं, बीते दिनों जो निकाय चुनाव के नतीजे आए हैं, उसमें भाजपा अपने गढ़ ग्वालियर में हार गई है। ग्वालियर नगर निगम पर 58 सालों से लगातार भाजपा का कब्जा था। ज्योतिरादित्य सिंधिया के आने से ग्वालियर में पार्टी की ताकत कथित रूप से बढ़ी थी लेकिन मजबूत किले को बीजेपी गवां दिया। इसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया की छवि को लेकर सवाल उठ रहे हैं। ज्योतिरादित्य सिंधिया 2019 लोकसभा चुनाव के दौरान गुना-शिवपुरी सीट हार गए थे। इस दौरान वह कांग्रेस में ही थी। हार के बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ दिन तक खामोश रहे। इसके बाद उन्हें यूपी विधानसभा चुनाव में प्रियंका गांधी के साथ जिम्मेदारी दी गई। वहां भी ज्योतिरादित्य सिंधिया कुछ खास कमाल नहीं कर पाए।
पश्चिम बंगाल में चलेगा जादू
बीते तीन सालों का ट्रैक रेकॉर्ड देखें तो बहुत बेहतर नहीं है। सरकार में ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रदर्शन अच्छा है। अब संगठन ने उन्हें साबित करने के लिए पश्चिम बंगाल में बेहतर मौका दिया है। 2024 के लोकसभा चुनाव में उनके कंधों पर दमदम लोकसभा सीट जिताने की जिम्मेदारी है। अब देखना होगा कि इसमें वह कितना कामयाब होते हैं। अभी पश्चिम बंगाल के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय हैं। कैलाश विजयवर्गीय भी मप्र से ही आते हैं। उनके और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीच रिश्ते जगजाहिर हैं। हालांकि दोनों समय-समय पर एक साथ दिखाने की कोशिश करते हैं। निकाय चुनाव में हार के बाद कैलाश ने इशारों-इशारों में फिर से तीर चलाया है। अब देखना होगा कि पश्चिम बंगाल में दोनों की ट्यूनिंग कितनी जमती है।