एलीवेटेड ट्रैक के नीचे लगाए जा रहे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम
भोपाल । भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल के साथ हर साल 20 लाख लीटर बरसात के पानी की बचत होगी। इसके लिए एलीवेटेड ट्रैक के नीचे रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए जा रहे हैं। गर्डर पर बारिश का जितना पानी आएगा वह पाइप के जरिए भूगर्भ में जाएगा। बतादें कि पहले चरण में एम्स से सुभाष नगर तक प्रायरिटी कारिडोर में वाटर हार्वेस्टिंग तकनीकी का इस्तेमाल किया जा रहा है। सात किलेामीटर के ट्रैक के साथ इनके बीच बनने वाले आठ स्टेशनों में बरसात के पानी को सीधे भू्गर्भ में पहुंचाने के लिए पाइप लाइन डाली जा रही है। मप्र मेट्रो रेल के अधिकारियों ने बताया कि प्रायरिटी कारिडोर में 226 पिलर बनना है। इनके बीच की दूरी 31 से 34 मीटर के बीच है। एक पिलर को छोड़कर यानि कि 65 से 70 मीटर की दूरी पर रेन वाटर हार्वेस्टिंग के लिए पाइप डाली जाएगी। इन पाइपों के सहारे पानी नीचे उतरकर ढाई मीटर की मिडियन में जाएगा। यहां कारिडोर के नीचे पानी के लिए रिर्चाज वेल होगा, जो पानी को साफ कर ग्राउंड लेवल में पहुंचाएगा। मेट्रो स्टेशनों और डिपो में बनने वाले पिट आयताकार होंगे जबकि एलीवेटेड रूट के नीचे बनने वाले पिट गोलाकार होंगे।
500 लोगों के साल भर के जरुरत का पानी होगा भंडारित
राजधानी में आगामी पांच सालों में 31 किलोमीटर की दूरी पर मेट्रो चलाने की योजना है। इससे लाखों लीटर पानी की बचत होगी। यह पानी 500 लोगों के सालभर खर्च केे बराबर होगा। हालांकि इस पानी का इस्तेमाल पीने व अन्य खर्च के लिए नहीं किया जाएगा। इसका उद्देश्य शहर के ग्राउंड लेवल को बढ़ाना है।
पानी बचाने के लिए शौचालय में लगाए जाएंगे सेंसर
मेट्रो रेल के स्टेशनों में बनने वाले शौचालयों व वाश बेसिन में पानी बर्बाद ना हो। इसके लिए नलों में सेंसर लगाए जाएंगे। यूरिनल में भी सेंसर लगे होंगे, यहां स्वचालित तंत्र के जरिए नल का पानी नियंत्रित होगा। मेट्रो स्टेशनों में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट भी लगाया जाएगा। सीवेज के पानी को शोधित करके उसे दोबारा प्रयोग किया जा सकेगा। इस पानी का उपयोग धुलाई व पेड़ों की सिंचाई के लिए किया जाएगा। पानी की खपत पर निगरानी रखने के लिए वाटर मीटर लगाए जाएंगे।